Tuesday 10 January 2012

आदिलशाही कालीन दक्खिनी काव्य

आदिल “ााही कालीन दक्खिनी काव्य

डाॅ . हा”ामबेग मुसाबेग मिर्झा


आदिल“ााही का उदभव ः-
. सन 1347 के बाद दक्षिण भारत में दूसरी महत्व पूर्ण घटना 1490 में बहमनी “ाासन के विभाजन की हुई । जिसमें दक्षिण भारत में निजाम”ााही, आदिल”ााही और इमाद”ााही का जन्म हुआ । इस घटना से न केवल राजकीय परिवर्तन हुआ बल्कि दक्खिनी भा’ाा के विकास की गति को भी बढावा मिला। इस समय दक्खिनी भा’ाा का विकास उत्तरोत्तर हो रहा था जिसमें कई स्थानीय राजाओं की दक्खिनी के प्रति आसक्ति भी रही है । युसूफ अदिल”ााह जो आदिल”ााही का संस्थापक था स्वंय विद्या एवं कला प्रेमी था । इतना ही नहीं वह स्वंय कवि और संगीतज्ञ भी था । इस कारण कलाकारों एवं कवियों को हमे”ाा आदर ,सम्मान और पुरस्कार दिये जाते थे । जिसके परिनाम स्वरुप कई कवि ईरान और ईराक से बीजापुर आकर रहने लगे । जिनमें हाजी रूमी , “ोख नसिरूदीन , अल्लामा नसरूल्लाह और पीर मकसूद मुख्य है । इस समय राजभा’ाा फारसी और राजधर्म “ाीया था किंतु आगे के “ाासक सुन्नी हुए । जिससे दक्खिनी के विकास में बहुत योगदान हुआ ।
आदिल”ााही “ाासन लगभग दो सौ वर्’ाों तक राज करता रहा, जिसमें नऊ राजाओं ने “ाासन किया । इनमें -
( 1 ) युसूफ अदिल”ााह सन 1480 ई. - 1510 ई.
( 2 ) ईस्माईल अदिल”ााह सन 1510 ई. - 1534 ई.
( 3 ) मुल्लू आदिल”ााह सन 1534 ई. - 1534 ई.
( 4 ) ईब्राहीम आदिल”ााह प्रथम सन 1534 ई. - 1558 ई.
( 5 ) अली आदिल”ााह प्रथम सन 1558 ई. - 1580 ई.
( 6 ) ईब्राहीम आदिल”ााह द्वितीय सन 1580 ई. - 1627 ई.
( 7 ) मुहम्मद आदिल”ााह सन 1627 ई. - 1657 ई.
( 8 ) अली आदिल”ााह द्वितीय सन 1657 ई. - 1672 ई.
( 9 ) सिकंदर आदिल”ााह सन 1672 ई. - 1686 ई.
इन नऊ राजाओं में से मूल्लू आदिल”ााह ही ऐसे “ाासक हुए जो कवि या कलाकार नहीं थें । अन्य सभी “ाासक या तो कवि थे या फिर कलाकार, विद्ववान या संगीतज्ञ थे । कई ने दक्खिनी में उत्कृ’ठ रचनाओं का निर्माण किया । युसूफ आदिल”ााह के समय में दक्खिनी के श्रे’ठ कवि एवं सूफी संत “ााह मीरांजी “ामसूल उ””ााक बीजापुर में रहते थें । उनके बाद उनके पूत्र बुराहानुद्यीन जानम ने दक्खिनी के कई उच्च कोटि के ग्रंथों का निर्माण किया। वे ईस्माइल आदिल”ााह के “ाासन काल में साहित्य रचना कर रहे थे । स्वंय ईस्माईल आदिल”ााह भी वफाई उपनाम से कविताएॅ करते थे । जिसका उल्लेख कई प्रामाणिक इतिहास ग्रंथों में मिलता है । चैथे “ाासक ईब्राहीम आदिल”ााह प्रथम ने राजधर्म को “ाीया पंथ से सुन्नी में बदल दिया ,जिससे कई दक्खिनी के कवि बीजापुर आये जो गुजरात, अहमदनगर और औरंगाबाद के थे। यह कवि नही थे किंतु कला प्रेमी थे जिससे दक्खिनी का महत्व बढा । दक्खिनी बोलचाल की भा’ाा बनने में इससे मदद हुई ।
अली आदिल”ााह भी कला एवं संगीत प्रेमी था इसी ने “ाहर में नई मस्जीदें एवं बाग बनवाये किंतु यह फारसी प्रेमी था । इससे दक्खिनी को वि”ो’ा फर्क नहीं पडा। इसके बाद आदिल”ााही का छटा “ाासक इब्राहीम आदिल”ााह द्वितीय बना। जिसे विद्या ,कला ,साहित्य और संगीत में बेहद दिलचस्वी थी । इन्हों ने किताबे नवरस की रचना की ,जो संगीत की दृ’िट से उच्च कोटि की रचना है । यह गं्रथ दक्खिनी हिंदी साहित्य में अपना वि”िा’ठ स्थान रखता है । उन्होने राजभा’ाा फारसी को बदलकर दक्खिनी को अपनाया ,दक्खिनी के कवियों को पुरस्कार एवं सम्मान दिये जाने लगे । जिससे दक्खिनी के प्रति कवियों का रूझान बढता गया । इनके उपरान्त सातवे “ाासक मुहम्मद आदिल”ााह बने जो साहित्य और संगीत के पे्रमी थे । इनकी पत्नी भी दक्खिनी साहित्य प्रेमी थी उन्हीं के आश्रय में रूस्तमी एवं खु”नूद जैसे कवि साहित्य साधना कर रहे थे । इन के “ाासन काल में दक्खिनी को बहुत ही प्रश्रय मिला । सनअती और “ाौकी भी इन्ही के दरबारी कवि थे मुहम्मद आदिल”ााह के उपरान्त अली आदिल”ााह द्वितीय बीजापुर राज्य के आठवे “ाासक बने ,जिनका “ाासन काल युध्दों का काल रहा किन्तु इन्होंने कलाकारों , साहित्यकारों को उचित सम्मान एवं पुरस्कार दिए । दक्खिनी के साहित्य कारों को तो वि”ो’ा पुरस्कार दिए जाते थे । अली अदिल”ााह द्वितीय स्वंय भी कवि थे वे “ााही तखल्लूस से अपनी रचनाएॅ लिखा करते थे । उनका काव्य संग्रह इन दिनों प्राप्त हो चुका है जिसे प्रका”िात भी किया गया है । हा”ामी , नुसरती , मलिक ,अयाजी जैसे श्रे’ठ दक्खिनी कवि इन्ही के समकालीन है । आलमगीरी इतिहास कार वाफी खान ने अली आदिल “ााह द्वितीय की बहुत प्र”ांसा की है । इन्ही के “ाासनकाल में काजी नुरूल्लाह ने तारीख ए आदिल”ााही नामक इतिहास ग्रंथ की रचना की थी।
आदिल”ााही के अंतिम नववे “ाासक सिकंदर आदिल”ााह थे। वे हमे”ाा युध्द में तल्लीन रहते इस कारण साहित्य एवं कला के प्रति वे आधिक रूचि दिखा नहीं पाये किंतु दक्खिनी का साहित्य इस समय उरूज पर था । अब उसे “ाासक केे दरबार की आव”यकता नहीं थी , वह जन सामान्य की भा’ाा बन गयी थी । कवियों के दक्खिनी कसीदे एवं मर्सिए लोग बाजार - हाटों में गाते फिरते थे सही अर्थ में यह तो दक्खिनी का स्वर्ण युग था।

आदिल”ााही कालीन दक्खिनी के प्रमुख कवि एवं रचनाएॅ

1 “ााह मीराॅजी “ामसूल उ””याक - ”ााहदतुल हकीकत , खु”ानामा , खु”ानद , “ाहाकतनामा ,सबरस ( लगभग बारह रचनाए जिनमें से छह दक्खिनी की है )
2 “ााह बुरहानुदीन जानम - गद्य और पद्य दोंनो में लगभग 40 रचनाएॅ - इर”ाादनामा ,सुख सुहेला वसयतुल हादी, हुज्जतुल बका , नसीमुल कलाम आदि
3 इब्राहीम आदिल”ााह द्वितीय - नवरस
4 अबदल - ईब्राहीमनामा
5 आत”ाी -
6 मुकीमी - चंदर बदन व महीयार
7 अमीन - बहराम व हुस्न बानो
8 “ाौकी - फतहनामा निजाम”ााह , मेजबानी नामा
9 सनअती - किस्सा ए बेनजीर ,गुलदस्ता
10 खुे”ानूद - ह”त - बहि”त ,हुस्न-ए-बाजार
11 रूस्तमी - खाबिरनामा
12 दौलत - तकमिला , बहराम व गुलअंदाम
13 नूसरती - गुल”ाने इ”क , अलीनामा , तारिखे इस्कंदरी
14 अली आदिल”ााह “ााही - कुल्लीयात ,खाबिरनामा
15 “ााहमूल्क - “ारीयत नामा
16 अमीनूद्दीन अली अमीन - मुहब्बत नामा ( तसव्वूफ की 24 रचनाओं का उल्लेख डाॅं. इक्बाल अहमद ने कियाहै )
17 जहुर - गजल
18 हा”ामी - युसुफ - जुलेखा
19 अय्यागी - नजातनामा ,मसनवी फराईज
20 “ागीली - पंदनामो
21 अली - पंद दिलबंद
22 करीम - निजाम महदी व गैरा
23 मूर्तूजा - वसलनामा
24 हुसैनी - दीवान
25 मुख्तार - मेराजनामा ,मौलूद नामा
26 खुदरती - खस साला बनायार
27 मोमीन - इसरासे इ”क
28 खादीर - गजल महजिजा खातुन जन्नत
29 “ााहमीन - “ाजराीलातढवा
30 मौजन - दीवान कंजाजी जन्नत
31 “ााह अबदुल हसन कादरी - सुख अंजन
अभी तक के अनुसंधान से लगभग 40 दक्खिनी कवियों का परिचय एवं उनकी रचनाओं का पता चला है अभी और भी कई कवि वक्त के अंधकार में छुपे हुए है जिन्हे खोजने की आव”यकता हम दक्खिनी हिंदी साहित्य प्रेमीयों को है । इस पर अभी बहुत सं”ाोधन बाकी है ।

आदिल“ााही कालीन दक्खिनी काव्य परिचय

आदिल”ााही काल में अनेक दक्खिनी कवियों ने काव्य लिखा है । कई रचनाएॅ फारसी लिपि में और नागरी लिपि में प्रका”िात हो चुकी है । कई पांडूलिपियाॅ ग्रंथालयों में प्रका”िात होने का इंतेजार कर रही है । मैं यहाॅ सभी काव्य रचनाओ का उल्लेख भी नहीं कर सकता क्योंकि उनकी संखया बहुत बडी हैं । उनमें से कुछ रचनाओं के और रचनाकारों के संबंध में यहॅा उल्लेख् करना जरूरी है । इन सब में इब्राहीम आदिल”ााह द्वितीय की किताबे - नवरस पर चर्चा करना अत्याव”यक है ।

1 सुलतान इब्राहीम आदिल”ााह
इनका समय सन 1580 से 1627 रहा है । इन्होंने कई गजलें, मर्सिए और कसीदो की रचना की। किंतु उनका नवरस नामक गीत संग्रह दक्खिनी हिंदी में वि”ो’ा महत्व रखता है। इनके दरबार में फरि”ता, रफीउदीन “ाीराजी जैस इतिहासकार थे।दक्खिनी कवि एवं भा’ाा को यहाॅं विकसित होने का पूरा साजो सामान था। नवरस का प्रका”ान प्रो . नजीर अहमद ने करया है । ईब्राहीम आदिल”ााह को संगीत और राग का पूरा ज्ञान था जिसकी प्रचिति हमें किताबे - नवरस से होती है इसमें राग भूपाली , रामकली ,भैरवी ,पूरबी , आसावरी ,देसी, तोडी ,गैरी ,केदार , धनाश्री ,कानडा और कल्यान आदि राग पर अधारित गीतों की रचना की गई है इसमें कुल मिलाकर सत्तावन 57 गीत है ।
दक्खिनी सलातीन में जात एवं धार्मिकता को अधिक महत्व नहीं दिया जाता था । यह किताबे - नवरस से ज्ञात होता है । इसके गीतों में हिदूं देवी -देवताओं की खुब तारिफ देखने को मिलती है । इनमें ”िाव , पार्वती ,सरस्वती ,गणे”ा, इंद्र आदि प्रमुख है। सरस्वती की स्तुति करते हुए वे कहते हैं - नवरस सूर जुग जूनी आनंद सर्व गुणी ,
यु सत्यसरस्वति माता इब्राहीम प्रसाद भयी दूनो ।।
अर्थात हे माॅ सरस्वति तुम्हारी कृपा दृ’िट इब्राहीम पर रहने दो जिससे नवरस के गीत संसार में अमर होकर अनंत काल तक याद रहेगें । नारी सौंदर्य में उनकी लेखनी बहुत चली है प्रेयसी की आॅखों का वर्णन करते हुए वे कहते हैं -
कागत “वेत निर्मल नैन सुंदरा अख्खर खतकीर काजर।
बीच सिक्का तारिका पलखां लखोटी लपेटे तापर ।
अर्थात तुम्हारी आखों की सफेदी कागज है उनमें लगाया हुआ सुरमा मेरे लफ्ज हंै , काले दीदें में मेरी मुरत अर्थात मुहर है और आॅखों के उपर की पलके खत का लीफाफा है । नवरस का श्रृंगार वर्णन देखते ही बनता हैं प्रियतम के अंगप्रत्यंग का वर्णन विविध उपमाओं से किया गया है । खास तौर पर आॅंखों पर मर मिटने की बात कही गई है। वे इस आॅंखा की चंचलता एवं मादकता पर इतने आसक्त हो गये कि उस पर अपने प्राण न्यौछावर करने की बात करते है -
मस्त नैन होर अचपल अमूले यूं रे।
बोल राखे जिउ साथ तो अव्वल हूं देउं रे।
ईब्राहीम आदिल”ााह के जीवन में नवरस यह लफ्ज खास महत्व रखता था “ाायद इसी कारण कई चिजों को उन्होनें नवरस यह नाम दिया जैसे-नवरससपूर, नवरसमद्य, नवरस महल, नवरस ध्वज, नवरस हत्ती, नवरस होन आदि। उनकी संगीतज्ञता को देखते हुए ही उन्हे जगतगुरू कहा जाता है।
2 मुल्ला नुसरती ः-
आदिल”ााही काल के दूसरे महत्व पूर्ण कवि है मुल्ला नुसरती। इनका मूलनाम मुहम्मद नुसरती है। उनके पिता एंव दोनो भाई “ोख मंसूर और “ोख अ,रहमान सैनिक थे। नुसरती भी पे”ो से सैनिक ही थे किंतु उन्हें अली आदिल”ाह ने कविताएॅ लिखने के लिए प्रेरित किया था। इस कारण वे सुलतान का बहुत आदर करते, उन्हें ही अपना काव्य गुरू भी स्वीकार करते हैं -
मुंजे तरबियत कर तू जाहिर किया,
“ाउर इस हुनर का दे “ाायर किया।
मुज उस्ताद-उस्ताद-ए-आलम अछे
जिता इल्म अजबर जिसे जम अछे।।
मुल्ला नुसरती के तीन ग्रंथ प्राप्त हुए है 1-गुल”ान -ए-इ”क 2-अलीनामा और 3-तारीख -ए-इस्कंदरी। इनमें से प्रथम गुल”ान-ए-इ”क हिंदी के प्रसिध्द सूफी संत “ोख अब्दुल्ला मंझन कृत मधुमालती के कथानक से समानता रखता है । कथानक राजकुमार मनोहर और रामकुमारी मदमालती की पे्रंमगाथा है । जिसे मसनवी ढंग से लिखा गया है । कवि ने श्रंृगार के दोनों पक्षों को अपनाया है । विरह वर्णन में कोयल का गला बैठ जाता है और चकवा - चकवी रात को भी अलग अलग रहने लगते है । नायिका नायक के विरह में पान के समान पीली हो जाती है उसका वर्णन करते हुए कहते हैं -
दिखाने कूॅ पीव हाथ लगने सुरंग ।
सो पीली हुई पान ते विरह सगं ।।
नुसरती का दुसरा ग्रंथ है अलीनामा जो सुलतान अली अदिल”ााह के चरि+त्र को आधार बनाकर लिखा गया है । यह छत्रपति ”िावाजी ,मुगल बाद”ााह औरंगजेब ,गोलकोंडा का “ाासक कुतुब”ााह और अली आदिल”ााह के संघर्’ा की गाथा है । जन्मभूमि और रा’ट्र का गुणगान नुसरती इसमें करते है । बीजापुर की भूमि का वर्णन वे एक सजीव प्राणी के समान करते हुए कहते है -
दखन “ाख्स है जिस बीजापुर तन ।
ज्यूॅ इंॅसा हमें होर अली “ााह जीवन ।
इनकी तीसरी महत्वपुर्ण रचना है तारिख ए इस्कंदरी जो एक ऐतिहासिक ग्रंथ है । यह बीजापुर के अंतिम “ाासक सिकंदर आदिल”ााह से संबंधित है । इसका रचना काल सन 1677 अर्थात हिजरी 1083 है जिसका उल्लेख स्वंय कवि ने किया है -
सहस होर असी पर जौ से तीन साल
इसका लेखन तब किया गया जब बीजापुर राज्य पूरी तरह से खस्ता हाल में था । सूलतान अली आदिल”ााह अपने जीवन की अंतिम द”ाा को पार कर रहे थे । राज्य स्वार्थी गद्दारों का अडडा बन गया था ,इसे ही कवि अपने ग्रंथ में व्यक्त करता है । मानो यह वफादारों एव गद्दारों का इतिहास है । इसमें बहुत कम जगह कवि भावनिक हुआ है । युध्दो का वर्णन बेहद सजीव जान पडता है । नवाब बहलोल खाॅ की सेना का पराक्रम दर्”ााते हुए नुसरती कहते हैं -
हुई लाल भुइं यूॅ वो काली सगट ,
बिजापुर कन ज्यूॅ कि जोगी का मठ ।
नजर रन के मुदर्यां कूॅ देखत थकी ,
कहे तू की पर्दा है यक नाटकी ।।
अर्थात काली भूमि पूरी तरह से रक्तमय लाल हो गयी है । ऐसा लगता है जैसे बीजापुर के समीप किसी जोगी का मठ हो । जिधर भी नजर डालो ला”ों ही ला”ों नजर आती है इसे देखकर ऐसा लगता है जैसे किसी नाटक का यह परदा है। अपनी इस रचना के लेखन के उदे”य के संबंध में वे कहते है कि संसार में मेरा नाम हो यहाॅ के लोग मुझे वर्’ाों तक याद करते रहें इसी लिए मैंने इसका निर्माण किया है ।

3 मीराॅं हा”ामी ः-
आदिल”ााही दौर के तीसरे प्रमुख कवि है मीरॅंा हा”ामी । इनका मूलनाम सयद मीराॅं और काव्यनाम हा”ामी था ऐसो विदवानों का कहना है । मीराॅ हा”ामी सूलतान अली आदिल”ााह के “ाासन काल के कवि है । कुछ विदवानों का मानना है कि हा”ामी आॅखांे से अंधे थे । उनकी दो रचनाएॅ प्राप्त हुई हैं (1) यूसूफ जूलेखा और (2)गजलों का दीवान । यूसूफ जूलेखा हा”ामी की बहुचर्चित मसनवी है ,जिसमें छ. हजार 6000 से अधिक पद है , किंतु इसका उदे”य तसव्वूफ है ।
यूसूफ जूलेखा प्रेमाख्यान में श्रृंगार रस के दोनों पक्ष उजागर हुए हंै । कवि ने मुहावरे ,उक्तियॅंा एवं कहावतों का खूब प्रयोग किया है । इनके समान यथार्थ चित्र दूसरे किसी
दक्खिनी कवि ने नही खीचें । गजल ,रेख्ती ,मर्सिये आदि पर भी इनकी कलम चली है । इनकी रचना का एक उदाहरण दिखने से ही वे कितने सिध्द हस्त कवि थे इसका अंदाजा लगाया जा सकता है -
सजन आवे तो परदे के निकल कर भार बैठूॅगी ।
बहाना करके मोतियां का पिरोती हार बैठूॅगी ।।
उनो यहाॅ आव कहेंगंे तो कहूॅगी काम करती हूॅ ।
इठलाती होर मठलती चूप घडी दो चार बैठुगी ।।
नजीक में उनके जाने को खु”ाी सूॅ “ााद हो दिल में ।
बले लोगाॅ में देखलाने कूॅ हो बेजार बैठूगी ।।
डाॅ. देविसिह चव्हान ने इनकी गजलों का सूक्ष्मता से अध्ययन किया है । उनकी माने तो वे गजलें न होकर दक्खिनी लावनी है । जिसमें नारी मन की गहराई को बडी ही सूक्ष्मता से व्यक्त करने में हा”ामी सफल हुए हैं ।

4 सनअती ः-
आदिल”ााही दौर के चैथे महत्वपुर्ण कवि है सनअती अदिल”ााही कवियों में सनअती का अपना मकाम है ,जिनकी मसनवी किस्सा ए बेनजीर पौराणिक आधार पर लिखी गयी है । सनअती का मूलनाम मुहम्मद इब्राहिम खाॅं और काव्यनाम सनअती है जो मुहम्मद आदिल”ााह और सुलतान अली अदिल”ााह के “ाासन काल में विद्यमान थे । वे फारसी के विदवान थे किंतु मित्रों के कहने पर इसे दक्खिनी भा’ाा में रचा गया ऐसा वे स्वंय कहते हैं -
इसे फारसी बोलना “ाौक था ।
वले मैं अजीजाॅ कूॅ यो जोंक था ।।
कि दक्खिनी जबाॅ सो इसे बोलना ।
जो सीपी ते मोती रमन रोलना ।।
किस्सा ए बेनजीर में मसनवी “ौली की सभी वि”ो’ाताएॅ विद्यमान है । साथ ही कवि ने मौके ब मैाके पर इस्लाम की महत्ता भी प्रतिपादित की है । सूफी विचार धारा को प्र”नोत्तर “ौली में प्रस्तुत किया है जिससे उत्सुकता एवं रोचकता निर्माण हुई है । सनअती की दूसरी रचना गुलदस्ता है जो एक पे्रमाख्यान है ।

5 मुकीमी ः-
आदिल”ााही दक्खिनी कवियों में मुकीमी मी भी एक महत्वपुर्ण कवि है । जिनका नाम मुहम्मद मुकीमी था और वे नुसरती के समकालीन थे । इनकी रचना चंदबदन व महयार है जिसका निर्माण हिजरी 1050 में किया गया, यह एक पे्रमगाथा काव्य है । दक्षिण भारत में यह कहानी बहुत पहले से लोकप्रिय रही है उसी को आधार बनाकर कवि ने इसकी रचना की है । कछु विद्यवान इसे ऐतिहासिक घटना भी मानते हैं । कवि स्वंय कहता है कि इसे पढकर लोग लैला मजनू की दास्तान भूल जाएगें -
किस्सा मुज पिरित का कहया एक दिन ।
जो बिसरे तो लैला व मजनू को सुन ।।
चंदबदन व महयार की कहानी एक हिंदू राजा की लडकी चंदर बदन और मुस्लीम सौदागर महयार की है । जो सूफी तत्वंो को आधार बनाकर लिखी गयी है । इसका विरह वर्णन दिल को छू जाता है ।
सो तुझ बिन मुझे कुछ होना नहीं ,
कि बिन जल मछी का सो जीना नहीं ।
विरह में प्रेमी - प्रेमीका का मृत्यु हो जाती है और उन्हे एक ही कब्र में दफनाया जाता है ।

6 अबदल ः-
अबदल का मूलनाम अ.गणी था उनका इब्राहीमनामा दक्खिनी की बहु चर्चित रचना है, इसका प्रकृति वर्णन बेजोड है । उनके अनुसार इब्राहीम आदिल”ााह द्वितीय के कहने पर मुक्त रचना है । सुलतान के गृहस्थ
उन्होने इब्राहीमनामा की रचना की है । इसको मसनवी “ौली में लिखा गया है जिसे कई ”ाीर्’ाकों और उप “ाीर्’ाकों में विभाजित किया गया है । जिससे ऐसा प्रतित होता है कि यह जीवन को उन्होंने बहुत करीब से देखा था जिसका वर्णन उन्होंने किया है । प्रकृति वर्णन में कवि का मन बहुत रमा है ,रात के चंद्रमा केा देखकर वह कहता कि मानों अंधेरे की “ाराब चंद्रमा को पिलायी गई है -
अंधारे की कोई ले दारू पिलाय ।
दिसे चांद मुख बिन सियाही सू आय ।।
सूबह निकलने वाले सूरज के मनोहारी दृ”यों को भी कवि ने कलम बंद किया है । बीजापुर “ाहर के रमनीय दृ’यों का वर्णन करने से भी वह नहीं चुका । नवरस महल और नवरस उत्सवों का वर्णन भी इस रचना में मिलता है । कवि नारी सौदर्य का सुंदर वर्णन करता हुआ कहता है उसके माथे की बिंदी सूरज को भी फिकी कर देगी और उसका सुंदर मुख चाॅद को भी “ारमा देगा -
कोई जडत टीका पे”ाानी में लाय ,
खडा सूरज यूॅ सुबह मैदान आय ।
अजब टूट बिजली पडे चाॅद म्याॅ ,
दिसे खुए बुन्द मुख गर्मी निस्याॅ ।
उनकी भा’ाा में दक्खिनी या हिंदी के “ाब्दों का बोलबाला है । फारसी ,अरबी के “ाब्दों की मात्रा कम होने से रचना को सहज ढंग से समझा जा सकता है ।
विरह पक्ष ः -
दक्खिनी की मसनवियों में श्रंृगार के दोनों पक्षों प्रस्तुत किया जाता है। क्यो कि आत्मा - परमात्मा का मिलन सहज संभव नहीं । उसे परमात्मा में विलीन होने के लिए कई संकटों का सामना करना पडता है । ठीक उसी तरह लौकिक प्रियतम और प्रियतमा विरह की आग में जलते हैं ,तथा कई संकटों का सामना भी करते है । अली आदिल”ााह की विरहनी प्रियतमा कहती है -
ला दीपक बिरहा अपने में
तन जाली झुक - झुक जपने में ,
तुझ याद कर तिलमिलाती हूॅं ,
लहु तेल में दिल तलती हूॅं ,
तन मोम बत्ती हो जलती हूॅं ।

आभू’ान प्रियता ः-
भारतीय समाज में गहनों का बहद महत्व है । नारी सौंदर्य को बढाने के लिए तो इनका उपयोग होता ही था साथ ही सामाजिक प्रति’ठा का प्रमाण भी माना जाता था।
दाक्खिनी के कवियों ने नारी आभू’ानों की चर्चा अपने काव्य में की है । वि”ो’ा तौर पर सोने का महत्व तत्कालीन दौर में भी वैसा ही था जैसा इस दौर में है । “ााही अपने गजल में सौदर्य वर्णन करते हुए कहते हैं -
सिना है सकी का सोने सार का ,
सोना होर मोती गले हार का ।
सोने का जरीना सोने का है अंग ,
सोने का है टीका सोने का है मांग ।
करम तुझ रे “ााही का दिसता है आज ,
सोने का आॅंचल ओट करती है लाज ।
जन्मभूमि प्रेम ः- ( दखन की तारीफ )
आदिल”ााही कालीन सभी कवियों ने दखन की अर्थात अपने जन्मभूमि की भूरी - भूरी पं्ररासा की है । यहाॅं पर जन्म होगा तो जीवन सफल होगा किंतु यहाॅं पर दफनाया गया तो सीधे स्वर्ग में जगह मिलेगी क्यों कि यह पवित्र भूमि है । नुसरती इस संबध में कहते हैं-
दखन की अजब बख्तवर खाक है ,
कि जिस बीच तुज खाब गह पाक है ।
यह मुई किस खतर में न होय होलनाक ,
कि कल है तिस गुल तेरा कब्र पाक ।
सामाजिक जीवन ः-
आदिल”ााही कालीन दक्खिनी कवियों ने तत्कांंंलीन समाज का यथार्थ चित्रण अपने काव्य में किया है । रीति - रिवाज एवं परंपराओं को “ाब्द बध्द करने में वे सफल रहे हैं । नुसरती ने गुल”ान -ए- इ”क में कई परंपराओं को विस्तार पूर्वक लिखा है ,जिनमें कंगन खेलना ,जुआ खेलना ,बारातियों का स्वागत करना ,ना”ता करना , आदि । अनेक पकवानों का और आभू’ानों का वर्णन भी वे करते है ।
गुरू या पीर की महत्ता ः-
दक्खिनी के सभी सूफियों ने गुरू के महत्व को प्रतिपादित किया है। आत्मा के परमात्मा में मिलन के लिए सच्चा गुरू बेहद आव”यक है । यूॅं तो दक्खिनी काव्य में गुरू परंपरा भी दिखाई देती है । दक्खिनी काव्य के प्रसिध्द सूफी संत “ााह मीराॅंजी “ाम्सुल उ””याक भी गुरू के महत्व को व्यक्त करते हुए कहते है -
पीर वही जो प्रेम लगावे ,नूर नि”ाानी ऐन ।
मंजिल की सुध लगावे जहाॅं दोस ना रैन ।
अलौकिक पे्रम का वर्णन ः-
दक्खिनी की सभी मसनवियों में अलौकिक प्रेम का वर्णन दिखाई देता है। चाहे वह कुतुब”ााही दरबारी काव्य हो ,निजाम”ााही दरबारी या फिर आदिल”ााही दरबारी वहाॅं अलौकिक प्रेम का वर्णन आव”य ही मिल जाता है । इस समय में जितनी भी मसनवियाॅं लिखी गई वह किसी न किसी लोकगाथा या लोक कथा का आधार थी । कवि अजिज अपनी प्रसिध्द मसनवी लैला मजनूं में अलैकिक प्रेम के महत्व को स्प’ट करते हुए कहते है -
ओ मअ”ाुक आ”िाक में मअना अहे ,
लैला होर मजनूं बहाना अहे ।
दक्खिनी के अन्य प्रसिध्द काव्यों का परिचय मैं पहले ही दे चूका हूॅ । उन पर यहाॅ विस्तार से विवेचन करना संभव नहीं है किंतु सभी काव्यों पर एक नजर डाले तो उनमें यह समानता दिखाई देगी - मसनवी “ौली का उपयोग , तसव्वूफ की महत्ता , इस्लाम धर्म की महत्ता , पैगंबर एवं ह.अली की तारीफ , बारा इमामों की तारीफ , प्रकृति वर्णन , नारी सौंदर्य का वर्णन , युध्द के जीवंत चित्र उपस्थित करना ,प्रेम की महत्ता स्थापित करना ,धर्म के स्थान पर मित्र या इन्सानीयत को महत्व देना ,लोक कथाआंे को आधार बनाकर जनभा’ाा का प्रयोग करना , रा’ट्रप्रेम , जन्मभूमि से प्रेम , दक्खिनी भा’ाा से प्रेम व्यक्त करना आदि समानताए आदिल”ााही कालीन दक्खिनी काव्य की वि”ो’ाताए होगी ।
अंतः मैं यही कहना चाहूॅगा कि आदिल”ााही कालीन दक्खिनी साहित्य के अध्ययन ,सं”ाोधन की जरूरत है चाहे फिर व हिंदी के माध्यम से हो या उर्दू के माध्यम से । इससे तत्कालीन इतिहास के सच्चे रूप को महसूस किया जा सकता है जिससे हमारे दे”ा में एकता बंधुता एवं मित्रता प्रस्तापित करने में योगदान होगा ।


डाॅ . हा”ामबेग मुसाबेग मिर्झा
कला ,विज्ञान एवं वाणिज्य महाविद्यालय नलदुर्ग ,जि.उस्मानाबाद-413602 महारा’ट्रªª
ई.मेल -drmirzahm@gmail.com 09421951786